भारत माँ की पुकार – a tribute to #Pulwama Shaheeds by Vivek Agnihotri



Share

शहीदों की भूमि हूँ मैं
बलिदानो की धरती हूँ
सारे दुश्मन देखे मैंने
सारे आतंक झेले हैं
हिंसा अहिंसा का संगम हूँ मैं
हूँ युद्धों का मैदान
मेरे दामन में है बसा
वीरों का श्मशान
भारत हूँ मैं, माँ तेरी
मैं ही तेरा भूत
भविष्य और वर्तमान
इसीलिए तो मेरे बेटे
जब हो रहे थे
चीथड़े मेरे
और हुआ घोर अपमान
तब तू ही तो
पार्थ बनके आया था
औ अपनी माँ की ममता का
तूने क़र्ज़ चुकाया था।

जिनको पाला पोसा मैंने
उन बच्चों ने भोंके ख़ंजर
फिर भी मैं मुसकाई थी
ममता मेरी उन को
क्यों समझ ना आइ थी
याद है जब मुग़लों ने
मेरे सीना फाड़ा था
होती रही खंडित दंडित
पर तुम पर आँच ना आइ थी
तभी तो तू
शिवा बन के आया था
और अपनी माँ की ममता का
तूने क़र्ज़ चुकाया था

अंग्रेज़ों ने जब
बंदी मुझे बनाया था
तब तुम ही तो थे
जिसने मेरी बेड़ियों को
अपने तप से गलाया था
काट दिए थे हाथ
लहू लुहान थी छाती
छीन के मेरे लज्जा वस्त्र
नग्न प्रदर्शन की थी तैयारी
अग्नि परीक्षा में विजयी होकर
तब तुमने ही अपनी माँ को
तिरंगे से छुपाया था
एक बार फिर
अपनी माँ की ममता का
तूने क़र्ज़ चुकाया था।

आज फिर तेरी माँ के दामन पे
ख़ून की हुई बौछार
सीमा पे जाते मेरे बेटों को
छल कपट से दुश्मन ने
आघात पहुँचाया है
कांपते हाथों से मैंने उन
कोमल अरमानों को दफ़नाया है
आज फिर इस माँ के
बलिदानों का
क़र्ज़ चुकाने का
वक़्त आया है

गर तू मेरा बेटा है तो
कर प्रतिज्ञा
लगा तिलक उठा तलवार,
धर्मयुद्ध का बजा शंख
बन पार्थ कर कूच
कर विनाश असुरों का
कोई ग़लती ना हो
कोई रहम ना हो
सिर्फ़ दुश्मन का सीना हो
और मन में तेरे बदला हो
लहू बहे दुश्मन का तब तक
बह न जाए मुल्क वो जब तक
बढ़ आगे मेरे पार्थ
अब फिर तेरी बारी है

छल कपट के कुरुक्षेत्र में
मृत्यु से ऊपर भी है एक दंड
अब उसे देने की बारी है
लहू सूखे मेरे बेटों का
उससे पहले
विजय ज्योत जलानी हैं
इस माँ की ममता की
हर बेटे को है ललकार
बहुत सहा माँ ने तेरी
अब फिर तेरी बारी है
अब फिर तेरी बारी है।

-विवेक अग्निहोत्री

Donate to I Am Buddha Foundation

Tags:

Be the first Buddha to read our articles!